देश में प्रिंट मीडिया पर वेब और सोशल मीडिया का खतरा मंडरा रहा है। पिं्रट समाचार पत्रों की प्रसार संख्या में लगातार कमी आ रही है और वेब मीडिया अपने पैर पसार रहा है। सोशल मीडिया की दस्तक ने समाचार पत्रों को और भी कमजोर कर दिया है। ऐसे में समयावधि में निकलने वाली पत्रिकाओं को लेकर कई सवाल खड़े हो जाते है। भविष्य तो दूर की बात है, वर्तमान में पत्रिकाओं की प्रसार संख्या में बढ़ोत्तरी की बात बेमानी सी लगती है। ऐसे में इंदौर से निकलने वाली बाल पत्रिका ’देवपूत्र’ इसका अपवाद बनी हुयी है। लगातार बंद होने के संकट से गुजर रही पत्रिकाओं के बीच देवपूत्र सर्वाधिक प्रसार संख्या वाली पत्रिकाओं में शुमार है। देवपूत्र, भारत की उन पत्रिकाओं के लिये एक आदर्श उदाहरण है जो किसी न किसी कारण से बंद होने की कगार पर पहुंच गयी है। देवपूत्र वास्तव में पत्रिकाओं के लिये संजीवनी है, जिसकी रणनीति अन्य पत्रिकाओं के लिये जीवित रहने का आधार हो सकती है। प्रस्तुत शोध पत्र में देवपूत्र के विकास से लेकर प्रबंधकीय नीतियों पर प्रकाश डाला गया है।