बिरसा मुंडा का प्रादुर्भाव हुआ जो आगे चलकर जनजातीय आकांक्षाओं का मूर्त रूप सिद्ध हुआ। जनजातियों में मुंडा ही सर्वाधिक शोषित थे। न उन्हें किसी प्रकार की स्वतंत्रता थी और न उनके कोई अधिकार थे। वे अपने देवी-देवताओं में भी विश्वास खोते जा रहे थे क्योंकि ये शोषकों से उनकी रक्षा करने में असमर्थ थे। किन्तु बिरसा ने इन्हें एक नया धर्म, नवीन जीवन-दर्शन, नवीन आचार संहिता और जो कुछ उन्होंने खो दिया था उसे फिर से प्राप्त करने का एक कार्यक्रम दिया। सबसे बड़ी बात कि आदिवासियों को लगा कि बिरसा के माध्यम से वे अंग्रेजों को छोटानागपुर से निकाल बाहर कर सकते थे।
मनोज कुमार पंडित. जनजातीय आन्दोलन में विरसा मुण्डा की भूमिका. International Journal of Advanced Education and Research, Volume 5, Issue 6, 2020, Pages 25-28